श्री यादे माँ का जीवन परिचय
श्री यादे माँ को प्रजापति समाज की आदि देवी एवं अधिष्ठात्री देवी माना जाता है | इनके जीवन से सम्बन्धित अनेकों कहानियाँ शास्त्रों एवं पुराणों में प्रचलित हैं, इनमे से सबसे प्रचलित और विश्वसनीय कथा निम्न प्रकार से है-
Shri Yaade Maa |
पुराणों के अनुसार, समय-काल की गणना में त्रेता युग के प्रथम चरण में हिरण्यकशिपु नामक एक दुष्ट प्रवृति का राक्षस राजा हुआ जिसका राज्य मूल स्थान (मुल्तान) पंजाब पाकिस्तान में स्थित था | उसके समय में अधर्म के नाश एवं भक्ति की महिमा एवं उसके उद्भव के लिए नरहरि खण्ड के अझांर नगर में भगवान शंकर ने कुम्हार उडनकेसरी व माता उमा ने श्रीयादे देवी के रूप में असोज (आश्विन) मास की शरद-पूर्णिमा के दिन दिव्य रूप में इस धरती पर अवतरित हुए।
राजा हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा जी की घोर तपस्काया कर के ये वरदान प्राप्त किया था कि न वह आकाश में मरेगा, ना जमीन पर, ना घर में, ना बाहर, ना दिन में, ना रात में, ना नर से, ना पशु से, ना अस्त्र से, ना शस्त्र से | ऐसा वरदान पाकर हिरण्यकश्यप अहंकारी हो गया और निरंकुश होकर अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा । उसने स्वयं को भगवान् घोषित कर दिया और भगवान का नाम लेने वाले पर पाबंदी और धर्म-कार्यों पर रोक लगा दी।
अधर्म बढता देखकर, मन में मां अकुलाया ।
सत्य का आभास करा, लीना धर्म बचाया।।
दोनों पति-पत्नी ने उस दुष्ट की राजाज्ञा की परवाह ना करते हुए ,संयम एवं नियम से अपने इष्ट भगवान की उपासना व भक्ति करते हुए गांव कोल्या मेंअपना कुम्हारी (मिट्टी के बर्तन बनाना) करने लगे। हमेशा की तरह एक दिन मिट्टी के कच्चे बर्तन को पकाने के लिए उन्हे भट्टी (आवा) में लगा दिया और भट्टी में अग्नि प्रवेश भी करा दी ।
आवा खिडकों दो जनों, घुसे बिलौटे चार।
उठती लपटे देखकर, कियो हरि विचार ।।
दोनों डूबे सोच में जलता आवा देख।
जो भी आया आग में, बच पाया ना ऐक।
इतने में थोड़ी देर के बाद एक बिल्ली चिल्लाती हुई वहाँ आयी और अपने बच्चों को इधर-उधर ढूंढने लगी। बिल्ली की करूणामय आवाज सुनकर व उसकी घबराहट देखकर श्रीयादे माता ने अपनी पति श्री उडनकेसरी जी से पूछा कि वह कच्चा कलश (घड़ा) कहां है, जिसमें बिल्ली ने अपने बच्चे दिए थे। तब श्री उडनकेशरी जी ने कहा कि प्रिये ! वह मटका तो मैनें भूल से भट्ठी में पकाने के लिए रख दिया और उसमें अग्नि भी प्रज्जवलित कर दी है तथा बर्तन तो बस पकने ही वाले हैं।
अगन प्रभु शीतल करो, क्षीर सागर से आर।
हाथ जोड विनती करें, लेवो आप उबार।।
अगन प्रभु शीतल करो, क्षीर सागर से आर।
अपने पति के ये वचन सुनकार श्रीयादे माता अत्यंत दुःखी हुई एवं उडनकेसरी जी भी अत्यंत चिंतित हो गये। अग्नि में रखे बिल्ली के बच्चों की प्राण-रक्षा के लिए भी दोनों पति-पत्नी भगवान विष्णु की उपासना व कीर्तन करने लगे |
उसी समय प्रभु भक्त प्रह्लाद घूमते हुए वहाँ आये और उस कुम्हार पति-पत्नी को राजा हिरण्यकशिपु की जगह भगवान विष्णु का भजन और कीर्तन करते देख प्रहलाद व उनके साथियों को बडा आश्चर्य हुआ। राजकुमार प्रहलाद के साथ रहने वाले सिपाहियों ने उन्हें डांटते हुए कहा कि तुम राजा की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए ईश-भक्ति क्यों कर रहे हो ? हमारे राजा के सामने तो देवता व इन्द्र भी अपना सर झुकाते है।
आ धमका प्रहलाद जब, पूछे बारम्बार ।
राम नाम वर्जित यहां, तुम क्यों रहे पुकार ।।
तब श्रीयादे माता ने राजकुमार प्रहलाद को समझाया कि हे राजकुमार ! आपके राजा से कई गुना शक्ति व अनंत शक्ति के भण्डार हमारे भगवान विष्णु है। हमारे भगवान विष्णु आग में बाग लगाने की शक्ति व सामर्थ्य रखते है। ऐसी शक्ति आपके स्वामी के पास नहीं है। तब श्रीयादे माता ने भक्त प्रहलाद के सामने, प्रज्जवलित भट्ठी (आवा) में से बिल्ली के बच्चों को भगवान विष्णु से जीवन-दान दिला कर भक्त प्रह्लाद की भगवान विष्णु से प्रीति करवाई।
श्री हरि सुमिरन मात्र से, जावे किस्मत जाग।
शीतल हो पल मात्र में, घूं-धूं करती आग।।
जब संकट में नर पडें, जपता नर हरि नाम।
नरधन की सुन टेर को, दुःख हरतें श्री राम।।
उन्होंने यह कार्य चैत्र मास की शीतला-सप्तमी को किया गया और इसी दिन प्रहलाद को माता श्रीयादे की कृपा से ब्रहम-ज्ञान की प्राप्ति हुई एवं वो ईश्वर भक्ति में लगे। उन्होनें राजकुमार प्रहलाद को बताया कि आज भूलवश वह मटका आवा में रखा गया है जिसमें बिल्ली के नवजात बच्चे थे। अब उस पप्रचंड अग्नि से उन्हें बचाने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना कर रहे है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि उस दहकती अग्नि से भगवान बिल्ली को सकुशल बाहर निकाल लेंगे।
माता श्री यादे की यह बात सुनकार राजकुमार प्रहलाद उवं उनके साथियों को बहुत आश्चर्य हुआ व उन्हें देखने के लिए प्रहलाद व उनके साथी वही रूक गये | फिर भी श्रीयादे माता व उनके पति पुनः हरि-स्मरण करते हुए, बर्तन की भटटी (आवा) खोलना शुरू कर दिया। भट्ठी में से बर्तनों को निकालते हुए जब उस बिल्ली के बच्चों वाले मटके की बारी आई तो राजकुमार ने देखा कि मटका बिल्कुल कच्चा है और उसमें से बिल्ली के बच्चे हर्षोन्मत होकर बाहर निकले। उस प्रचंड अग्नि में से बिल्ली के बच्चों को जीवित निकलता देखकर प्रहलाद ने श्रीयादे माता से नवधा भक्ति व हरि-कीर्तन का पाठ पढ़ा और उसके बाद वो अपने राजमहल लौट गए व भक्त प्रहलाद के नाम से प्रसिद्ध हो गये एवं हरि-कीर्तन करने लगे।
कुशल बिलौटे देखकर, चकित हुआ प्रहलाद।
हाथ जोड़ चरणन पड़ा, किया मात आबाद।।
ऐसी शक्ति राम में, सुन लो मेरी मात।
राम नाम का मंत्र दो, रख दो सिर पर हाथ।
जब यह बात राजा के सेनापतियों एवं गुप्तचारों को मिली तो उन्होनें इसकी सूचना राजा को दी कि आपका पुत्र राजाज्ञा से विमुख होकर हरि-कीर्तन करने लगा है। तब राजा ने अनेक प्रकारों से भक्त प्रहलाद को समझाया एवं उसके ना मानने पर उसे मृत्यु दण्ड देने का आदेश भी दिया । जिसमें हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद की हत्या करने के लिए आदेश दिया जिसके परिपालन में होलिका द्वारा भक्त प्रहलाद को मारने के लिए गोद में लेकर बैठ गयी।
भक्त बुआ की गोद में, बैठा ले हरि नाम।
अग्न स्नान में वह जली, भक्त रटे श्री राम।।
क्योंकि उसे वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती | किन्तु मां श्रीयादे की अनुकम्पा से होलिका का वह वरदान फलीभूत नहीं हुआ एवं वह स्वयं उस अग्नि में भस्म हो गयी और भक्त प्रह्लाद बच गये | तभी से होलिका दहन का पर्व मनाने की परम्परा रही है। भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप की जीवन लीला समाप्त कर दी।
खम्ब फाड़ प्रकट हुए, धर नर के हरि रूप ।
देव सभी हर्षित हुए, देख सभी स्वरूप ।।
इस कथा में भक्त श्रीयादे माता प्रजापति, भक्त प्रहलाद की आध्यात्मिक गुरू एवं भक्ति की प्रेरणा स्त्रोत के रूप में वर्णित है। उसके बाद श्रीयादे माता व उडनकेशरी ने अर्थात उमा महेश नृसिहं भगवान के दर्शन किए व अपने मूल रूप में कुम्भकार को दर्शन देकर जल (सूर्यकुण्ड) में प्रविष्ठ हो शिव धाम लौट गए।
हुई धर्म की स्थापना, छाई मंगरे बेल।
जय-जय करने लगे, आई सुख की रेल।।
वर्तमान में मुल्तान, पंजाब में स्थित यह नगर हिरण्यकश्यप की राजधानी तथा भक्त प्रहलाद का जन्म स्थान है। यही पर नृसिंह भगवान ने अवतार लिया था। नृसिंह चतुदर्शी को यहां पर मेला लगता है एवं राजकुमार प्रहलाद को तत्व-दर्शन देने के कारण शीतला सप्तमी को श्रीयादे माता के सम्मान स्वरूप उनका स्मरण दिवस इसी दिन भव्य उत्साह के साथ प्रजापति समाज के द्वारा मनाया जाता है।
मां तेरे चरा पडा प्रजापति नादान।
ReplyDeleteमुझ में अवगुण ना रहे दो इतना वरदान।
मां कृपा करती रहांे, अपना सेवक मान।
क्या पूजा क्या पाठ है, मैं सबसे अनजान।।
जय हो
ReplyDeleteRespect and I have a keen proposal: What House Renovations Can You Claim On Tax home repairs contractors
ReplyDelete